सुप्रीम कोर्ट इन दिनों मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बलात्कार से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। इस पर केंद्र सरकार ने भी अपना स्टैंड सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया है। भारतीय न्याय संहिता के अनुसार अगर कोई पुरुष किसी महिला की सहमति के बिना उसके साथ यौन संबंध बनाता है तो उसे बलात्कार माना जाता है। इस जुर्म के लिए कम से कम 10 साल की सजा हो सकती है और इसे आजीवन कारावास तक भी बढ़ाया जा सकता है।
हालांकि अगर कोई आदमी अपनी पत्नी के साथ इस तरह का कोई भी बिना सहमति वाला संबंध बनाता है तो उसे बलात्कार नहीं माना जाता है। भारतीय न्याय संहिता से पहले भारतीय दंड संहिता होती थी, उसमें भी यही था। मतलब कि रेप के मामले में जो भी कानून है, प्रोसीजर है वो विवाह के मामले में लागू नहीं होते। यानी भारतीय न्याय संहिता के रेप से जुड़े कानूनों में ये एक अपवाद है। एक्सेप्शन है। इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आठ याचिकाएं है, जिन पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है।
कुछ संगठनों ने ये तर्क दिया है कि ये जो मैरिटल रेप को अलग रखा गया है, ये असंवैधानिक है, लेकिन कुछ संगठन इसके फेवर में है और उन्होंने भी याचिकाएं दाखिल की है। लेकिन यह सवाल आपके मन में आ रहा होगा कि क्या इसका मतलब यह है कि अगर पति अपनी पत्नी के साथ बिना सहमति के यौन संबंध बना ले तो उसे कोई सजा नहीं मिल सकती? नहीं, ऐसा नहीं है। केंद्र सरकार और जो इस अपवाद के पक्ष में है उनका कहना है कि चाहे इसे रेप ना भी माना जाता हो।
लेकिन पत्नी घरेलू हिंसा, यौन शोषण को लेकर जो कानून है, उनका सहारा ले सकती है और यह तलाक का आधार भी हो सकता है तो फिर लोग इसे क्यों चुनौती दे रहे हैं? कई वूमेन राइट्स ग्रुप्स और एक्टिविस्ट इस अपवाद को खत्म करने के लिए लंबे समय से मांग कर रहे हैं। वैसे 100 से ज्यादा देशों में मैरिटल रेप को अपराध माना जाता है। भारत दुनिया के उन तीन दर्जन देशों में से एक है जो वैवाहिक जीवन में बिना सहमति के यौन संबंध को बलात्कार नहीं मानते हैं। 2022 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट देखें।
तो 18 से 49 साल की उम्र की 82% विवाहित महिलाओं को अपने पत्तियों की यौन हिंसा झेलनी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट के सामने दोनों पक्षों के दलीलें अभी शुरू होनी है, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट में जो दलीलें रखी गई थी उन्हें देख लेते हैं। इस अपवाद के खिलाफ़ याचिकाकर्ता ने तर्क दिया की ये प्रावधान असंवैधानिक है क्योंकि एक महिला के अपने शरीर पर अधिकार के खिलाफ़ है।
चाहे कोई महिला विवाहित है या नहीं, इसको लेकर उसके अधिकारों में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। उनका कहना है कि महिला कोई वस्तु नहीं है जिसे अपने पति को मना करने का अधिकार ही ना हो। उनका तर्क है कि बलात्कार बड़ा अपराध है, उसमें सजा भी ज्यादा है लेकिन जो दूसरे अपराध है उसमें सजा कम है। एक बार जब अदालत इस अपवाद को खत्म कर देगी तो ट्रायल कोर्ट ही व्यक्तिगत मामलों से निपट सकती है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके। कानून का दुरुपयोग ना हो।
मई 2022 में दिल्ली है। कोर्ट के दो जजों की बेंच ने इस मामले पर एक विभाजित फैसला सुनाया। मतलब बटा हुआ फैसला था उनका तो इसलिए अब सुप्रीम कोर्ट इस अपवाद की संवैधानिकता पर फैसला करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से भी उसका पक्ष मांगा था। अब जानते हैं कि केंद्र सरकार ने क्या कहा है? 3 अक्टूबर को पेश किए गए अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि विवाह में गैर सहमति वाले यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना जाना चाहिए।
ये बहुत कठोर होगा। विवाह एक अलग तरह का रिश्ता है। इसे दूसरे मामलों की तरह नहीं लिया जा सकता। विवाह में पति या पत्नी एक दूसरे से उचित यौन संबंध बनाने की अपेक्षा करते हैं। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि पति पत्नी के उसके शरीर पर अधिकार का उल्लंघन कर सकता है। इसलिए सरकार ने यह भी कहा है कि इसके लिए दूसरी सजा जैसे घरेलू हिंसा या यौन उत्पीडन वाले कानून हैं |
गैर सहमति वाले वैवाहिक यौन संबंध को बलात्कार घोषित करेंगे तो विवाह सास्था में disturbation पैदा होगी इसे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने भी कहा था की मैरिटल रेप को अगर रेप घोषित कर दोगे तो झूठे केस की बाड़ आ जाएगी | सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर बाकी राज्यों से स्टैंड भी मागा था जिनमे 19 राज्यो ने अपना जवाब दिया हे जिसमे से दिल्ली , त्रिपुरा , कर्नाटक ने कहा है की कोई अपवाद नहीं होना चाइए उनका मानना हे की मैरिटल रेप को भी रेप माना चाइए , 6 राज्यो ने अभी तक कोई स्टैंड नही लिया बाकी 10 राज्यो ने कहा हे की की कोई अपवाद नहीं होना चाइए |